‘सहर से शाम तक बंदे जो अपनी भूख सहते हैं, ये अपनी इन वफाओं से खुदा को जीत लेते हैं।’ ‘जो प्यासे हलक रब की याद आती है, अदा कुर्बानियों की किस कदर ये रब को भाती है।’ ‘यह रोज़ा रखना बंदो का बहुत महबूब है रब को, ये उनके मुंह की बदबू मुश्क से मरहूब है रब को।’ ‘है एक हथियार यह रोज़ा गुनाहों से हिफाजत का, जरिया यह भी है एक नफ्ज के शर से बगावत का।’
रोज़ा, जिसे अल्लाह ने अपने बंदों पर फर्ज (अनिवार्य) किया है, उसके अंदर अनेक हिक्मतें और ढेर सारे लाभ छिपे हुए हैं। यह एक ऐसी इबादत है जिसके द्वारा बंदा अपनी प्राकृतिक तौर पर प्रिय और पसंदीदा चीजों (खाना, पीना इत्यादि) को त्याग कर अल्लाह की निकटता और समीप्य प्राप्त करता है।जब रोज़ादार अपने रोज़े के कर्तव्य को अच्छे ढंग से पालन कर ले, तो यह उसके लिए तक़्वा व परहेज़गारी (संयम) का कारण है।
अल्लाह तआला ने फरमाया- ऐ ईमान वालों, तुम पर रोज़े रखना फर्ज किया गया है जिस प्रकार तुम से पूर्व लोगों पर अनिवार्य किया गया था, ताकि तुम संयम और भय अनुभव करो।रोज़ा की हिक्मतों में से एक हिक्मत स्वास्थ्य लाभ की प्राप्ति भी है। जो खाने को कम करने और पाचन प्रणाली को एक निश्चित समय के लिए आराम पहुंचाने के परिणामस्वरूप प्राप्त होता है। क्योंकि इस तरह शरीर को हानि पहुंचाने वाले अवशेष और बेकार तत्व शरीर के अंदर जमने नहीं पाते हैं।
रोज़े की कुछ हिक्मतें
1- ईश्वर का आदेश: रोज़ा रखना अल्लाह का आदेश है, और उसकी आज्ञा का पालन करना हर मुसलमान का कर्तव्य है।
2- आत्म-संयम: रोज़ा रखने से इंसान में आत्म-संयम और अनुशासन की भावना बढ़ती है।
3- दया और सहानुभूति: रोज़ा रखने से इंसान दूसरों की भूख और प्यास का एहसास कर पाता है और उनमें दया और सहानुभूति की भावना बढ़ती है।
4- स्वास्थ्य लाभ: रोज़ा रखने से अनेक स्वास्थ्य लाभ होते हैं, जैसे कि पाचन क्रिया में सुधार, रक्तचाप और मधुमेह का नियंत्रण, वजन में कमी आदि।