Hartalika Teej 2024: इस दिन रखा जाएगा हरतालिका तीज का व्रत, जानिए शुभ मुहूर्त, महत्व और पूजा विधि!

पंडित अनिल शर्मा

Hartalika Teej 2024 Date: हिंदू धर्म में हरतालिका तीज का विशेष महत्व है। यह व्रत सुहागिनों के लिए खास होता है। इस दिन सुहागिन स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत करती हैं। 

हरतालिका तीज के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस व्रत को कुंवारी लड़कियां रखती हैं तो मनचाहे वर की प्राप्ति होती है। जानें साल 2024 में कब है हरतालिका तीज-

Hartalika Teej 2024 Date

हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज मनाई जाती है। इस साल यह व्रत 06 सितंबर 2024, शुक्रवार को है।

Hartalika Teej 2024 शुभ मुहूर्त

तृतीया तिथि 05 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 21 मिनट पर शुरू होगी जो कि 06 सितंबर को दोपहर 03 बजकर 01 मिनट पर समाप्त होगी। प्रातःकाल हरितालिका पूजा मुहूर्त सुबह 06 बजकर 01 मिनट से सुबह 08 बजकर 32 मिनट तक रहेगा।

हरतालिका तीज महत्व: मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से सुहागिनों को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। यह व्रत कठोर व्रतों में से एक माना गया है। यह व्रत निर्जला रखा जाता है। कहा जाता है कि इस व्रत को माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए किया था।

तब से ही सुहागिन स्त्रियां हरतालिका तीज व्रत रखने लगीं।हरतालिका तीज महत्व: मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से सुहागिनों को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। यह व्रत कठोर व्रतों में से एक माना गया है। यह व्रत निर्जला रखा जाता है। कहा जाता है कि इस व्रत को माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए किया था। तब से ही सुहागिन स्त्रियां हरतालिका तीज व्रत रखने लगीं।

4. तीनों देवताओं को वस्त्र अर्पित करने के बाद हरतालिका तीज व्रत कथा सुनें या पढ़ें।

5. इसके बाद श्रीगणेश की आरती करें और भगवान शिव और माता पार्वती की आरती उतारने के बाद भोग लगाएं।

पैगंबर मुहम्मद साहब थे इंसानियत के इतिहास में सबसे बेहतरीन इंसान


अरब एक मुल्क है उसके एक शहर का नाम मक्का है। यहां खुदा के एक नबी हजरते इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने खुदा की इबादत के लिए एक घर बनाया था उसे काबा कहते है। मुसलमान हज करने के लिए यहीं जाते हैं और नमाज भी इसी की तरफ मुंह करके पढ़ते हैं। मक्का में हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के बेटे हजरते इसमाईल अलैहिस्सलाम की औलाद आबाद थी। उनके कई कबीले थे, जिनमे एक कबीला कुरैश बहुत मशहूर था। कुरैश का एक खानदान बनू हाशिम कहलाता था। इसके सरदार अब्दुल मुत्तलिब थे। यह काबा की देखभाल करते थे इसलिए लोग इनकी बहुत इज्जत करते थे। इनके एक बेटे अब्दुल्लाह थे, इनकी बीवी का नाम आमना था। इन्हीं बीवी आमना के यहां हमारे प्यारे नबी हजरत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु तअ़ाला अ़लैहि वसल्लम की पैदाईश हुयी।

मुल्के अरब

मुल्क-ए-अरब एशिया के पश्चिम इलाका का एक देश है।  अरब को तीन इलाको से समुद्र ने घेर रखा है। वही चैथी तरफ से फुरात नदी से टापू (द्वीप) की तरह घिरा हुआ है। इसके उत्तर दिशा में े-ए-इराक, पश्चिम दिशा में बहरे-अहमर, दक्खिन दिशा में बहरे-हिन्द वही पूरब दिशा में ख़लीज-ए-अ़म्मान व ख़लीज-ए-फ़ारस है। अरब मुल्क में उपजाऊ जमीन कम है वही चारों ओर रेगिस्तान व पहाड मौजूद है।

अरब मुल्क को आठ हिस्सों में बांटा गया है। 
1-हिजाज
2-यमन
3-हज़रमूत
4-महरा
5-अ़म्मान
6-बहरेन
7-नज्द
8-अहक़ाफ़

मक्का मुकर्रमा

अरब मुल्क के पहला हिस्सा हिजाज़ के पूरब दिशा में मौजूद शहर है मक्का। मक्का शहर को एक ओर से ‘‘जबले अबू कुबैस‘‘ व दूसरी ओर से ‘‘जबले कुएैक़िअ़ान‘‘ दो बडे-बडे पहाड़ों ने घेर रखा है, और इसके चारों तरफ से छोटी-छोटी पहाड़ियों और रेतीले मैदानों का सिलसिला दूर-दूर तक चला गया है। इसी मुबारक शहर में हुजूर शहन्शाहे-कौनेन सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की विलादते-बा-सआदत (पैदाईश) हुई। मक्का मुकर्रमा का बन्दरगाह और हवाई अडडा ‘‘जेददाह‘‘ है। मक्का मुकर्रमा में हर साल इस्लामिक कैलेंडर के आखिरी महीने जुल हिज्जा में तमाम दुनिया के लाखों मुसलमान हज्ज के लिए आते है।

मक्का मुकर्रमा के मशहूर मक़ामात(स्थान) है।
1-काबा मुअ़ज़्ज़मा
2-सफ़ा
3-मरवा
4-मिना
5-मुज़दलिफ़ा
6-अ़रफ़ात
7-ग़ारे हिरा
8-ग़ारे सौर
9-जबले तनईम
10-जिइर्राना

काबा शरीफ

मक्का शहर में काबा शरीफ है। काबा शरीफ की बुनियाद सबसे पहले हजरत जिबरईल अलैहिस्सलाम(अल्लाह के फरिश्ते) और हजरते आदम अलैहिस्सलाम(अल्लाह के पहले नबी) ने रखी। हजरत नूह अलैहिस्सलाम(नबी) के जमाने में सैलाब से काबा की तामीर एक टीले के रूप में रह गयी ।तब अल्लाह के हुक्म से हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम(नबी) ने काबा शरीफ की तामीर की। कुरैश के जमाने में जब काबा शरीफ की इमारत को बनाने की जरूरत महसूस हुयी तो उन्होने मुकम्मल तौर पर नई इमारत बनाने का ऐलान किया और यह तय हुआ कि इसमें हलाल माल खर्च होगा। उस वक्त के अमीरों के पास ब्याज का हासिल रूपया था। इसलिए हलाल माल कम तादात में हासिल हुआ। तो कुरैश ने माल की कमी की वजह से काबा शरीफ की इमारत को छोटा बना दिया औैर कुछ जमीन काबा के बाहर निकाल दी। काबा से बाहर निकली हुयी जमीन को हतीम कहा जाता है। हतीम शरीफ काबा के बाहर की जमीन है इसे गोल घेरे के रूप में छोटी दीवार से नुमाया किया गया है। हज और उमरा के दौरान तवाफ इसके बाहर से ही होता है क्योंकि यह भी काबा ही है। काबा शरीफ के अंदर सिर्फ वक्त के बादशाह को जाने की इजाजत है और वह चुनंदा लोग जो साल भर काबा का गिलाफ बनाते है। लेकिन अल्लाह की रहमत हम गरीबों पर भी है कि उसने हतीम शरीफ की जगह बनाकर हम गरीबों को भी काबा में दाखिल होने का मौका दिया। 

मदीना मुनव्वरा

मक्का मुकर्रमा से तकरीबन तीन सौ बीस किलोमीटर की दूरी पर मदीना मुनव्वरा है। जहां मक्का मुकर्रमा से हिजरत फरमाकर हुजूरे अकरम सल्लाल्लाहु तअ़ाला अ़लैहि वसल्लम तशरीफ लाए और दस बरस तक आप यहां रहकर इस्लाम की तब्लीग फरमाते रहे। इसी शहर में आपका मज़ारे मुकद्दस है जो मस्जिदे नबवी के अंदर ‘‘गुंबदे खज़रा‘‘ के नाम से मशहूर है। मदीना मुनव्वरा का पुराना नाम यसरब था। जब हुजूर ने इस शहर में सुकूनत फरमाई तो इसका नाम मदीनतुन-नबी (नबी का शहर) पड़ गया। फिर यह नाम मुख्तसर होकर मदीना मशहूर हो गया। तारीखी हिसाब से यह बहुत ही पुराना शहर है। यहां अरब के दो कबीले अबस व खजरज के अलावा यहूदी आबाद थे। चूंकि मदीना की आबो-हवा अच्छी नही थी। यहां तरह-तरह की बीमारियां फैलती थी। जब हिजरत के दौरान हुजूर व सहाबा यहां आए तो कुछ सहाबा यहां की हवा से बीमार होने लगे तो आपने मदीना मुनव्वरा के लिए अल्लाह तअ़ाला से दुआ फरमाई। आपकी दुआ के असर से मदीना मुनव्वरा आज तक महक रहा है।


आका की आमद मरहबा

मक्का मुकर्रमा के कुरैश कबीले के बनू हाशिम खानदान में वालिद(पिता) ‘अब्दुल्लाह‘ वालिदा(मां) ‘बीबी आमना‘ के घर 12 रबीउल अव्वल मुताबिक 20 अप्रैल 571 ई0 दिन पीर, सुबह सादिक के वक्त हमारे प्यारे नबी हजरत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु तअ़ाला अ़लैहि वसल्लम आलम-ए-वजूद में रौनक अफ्रोज(पैदा) हुए। आपकी पैदाईश पर आसमां व जमीं झूम उठी। अल्लाह के फरिश्ते हजरते जिबरईल अलैहिस्सलाम सत्तर हजार फरिश्तों के साथ जमीं पर तीन झंड़े लेकर आए। इनमें एक झंड़ा पूरब दिशा, दूसरा झंड़ा पश्चिम दिशा व तीसरा झंड़ा काबा शरीफ की छत पर गाड़ा। जब आप पैदा हुए उस दौर में अरब की सरजमीं पर चारों ओर कुफ्र का आलम था। औरतांे पर जुल्म हुआ करते थे, शराबखोरी, चोरी, कत्ल जैसी वारदातें आम हुआ करती थी। आपकी पैदाईश से पहले आपके वालिद साहब का इंतकाल हो गया। 6 वर्ष की उम्र में आपकी वालिदा भी आपसे रूखसत हो गयीं। वालिद व वालिदा के इंतकाल के बाद आपकी परवरिश आपके दादाजान अब्दुल मुत्तलिब ने की। 8 वर्ष की उम्र में आपके दादा का इंतकाल हो गया। आपके दादाजान ने हुजूर की परवरिश की जिम्मेदारी अपने छोटे बेटे अबू तालिब को सौंपी। दादा के बाद आपकी परवरिश आपके चचाजान अबू तालिब ने की। 

दूध पीने का जमाना

मुल्क-ए-अरब का रिवाज था कि अरब के लोग अपने बच्चों को दूध पिलाने के लिए आस-पास के देहातों में भेज देते थे। देहात की साफ-सुथरी आबो-हवा में बच्चों की तंदरूस्ती और जिस्मानी सेहत भी अच्छी हो जाती थी और वह खालिस और फसीह अरबी जबान सीख जाते थे। हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सबसे पहले अबू लहब की कनीज हजरते सुबैवा का दूध नोश फरमाया। फिर अपनी वालिदा माजिदा हजरते आमिना के दूध से सैराब होते रहे। एक रोज मक्का में देहात की औरतें बच्चों को दूध पिलाने व साथ ले जाने के लिए आयीं। उस दौर में बीबी आमना के हालात काफी तंग थे। यह जानकर कोई औरत बीबी आमना के घर हुजूर को लेने नही गयीं। उधर देहात से आयीं हजरते हलीमा सादिया की कमजोर हालात को देखकर किसी भी शहरे मक्का ने उन्हें कोई बच्च नही दिया। बाद में आपको हजरते हलीमा सादिया अपने साथ ले गयीं। जब हजरते हलीमा सादिया आपको लेकर आयीं तो उनके हालात अचानक से बेहतर हो गए। हजरते हलीमा सादिया के बेहतर हालात को देखकर सभी चैंक उठें। इस दौरान हजरते हलीमा सादिया कबीले में रहकर आपको दूध पिलाती रही और उन्ही के पास आपके दूध पीने का जमाना गुजरा। आपने दो साल तक हजरते हलीमा सादिया का दूध पिया वही आप पांच साल तक हजरते हलीमा सादिया के पास रहें। इस दौरान आप जिद करके हजरते हलीमा सादिया की बकरियां चरातें।


बचपन की अदाएं

हजरते हलीमा का बयान है कि आपका झूला फरिश्तांे के हिलाने से हिलता था। और बचपन में चांद की तरफ उंगली उठाकर इशारा फरमाते थे तो चांद आपकी उंगली के इशारों पर हरकत करता था। जब आपकी ज़बान खुली तो सबसे अव्वल जो कलाम आपकी ज़बान-ए-मुबारक से निकला वह था-
‘‘अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर अल्हमदुलिल्लाहि रब्बिल आ-लमीन व सुब्हानल्लाहि बुकरतोवं व असीला‘‘ 
जब आप अपने पांव पर चलने के काबिल हुए तो बाहर निकलकर बच्चों को खेलते हुए देखते। मगर खुद खेल-कूद में शरीक नही होते थे। लड़के आपको खेलने के लिए बुलाते तो आप फरमाते ‘‘मैं खेलने के लिए नही पैदा किया गया हूं।‘‘
  (मदारिजुन-नुबुव्वह जि0-2 स0-21)

हज़रते आमना की वफ़ात

हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहू तअ़ाला अलै़हि वसल्लम की उम्र शरीफ जब 6 वर्ष की हो गयी तो आपकी वालिदा माजिदा हजरते बीबी आमना आपको साथ लेकर मदीना मुनब्बरा आपके दादा जान अब्दुल मुत्तलिब के ननिहाल बनू अ़दी बिन नज्जार में रिश्तेदारों की मुलाकात व अपने शौहर की कब्र की जियारत के लिए तशरीफ ले गयी। वहां से वापसी पर ‘‘अबवा‘‘ नामी गांव में हजरते बीबी आमना की वफात हो गयी। और आपको वही पर दफना दिया गया। आपके वालिदे माजिद का साया तो विलादत से पहले ही उठ चुका था। अब वालिदा माजिदा का हाथ भी आपके सर से उठ गया। आपकी परविरश आपके दादाजान अब्दुल मुत्तलिब ने की लेकिन वह भी आपकी 8 वर्ष की उम्र में आपसे रूखसत हो गए।

Eid 2024: इस तरह करें ईद की शॉपिंग,इन टिप्स को अपनाकर बचाएं पैसे

(Eid 2024) का त्योहार नजदीक आ रहा है और इस त्योहार को मनाने के लिए लोग नई चीजें खरीदने की तैयारी कर रहे हैं। यदि आप भी ईद की शॉपिंग के लिए मार्केट जाने की योजना बना रहे हैं, तो यह लेख आपके लिए है। हम कुछ टिप्स बता रहे हैं जिनकी मदद से आप ईद की शॉपिंग करते हुए पैसे बचा सकते हैं।

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1. बजट बनाएं:

खरीदारी करने से पहले एक बजट बनाएं और उसी के अनुसार खरीदारी करें।
यह आपको अनावश्यक खर्चों से बचने में मदद करेगा।

  1. सूची बनाएं:

खरीदारी करने से पहले उन चीजों की सूची बनाएं जिनकी आपको आवश्यकता है।
यह आपको आवेगपूर्ण खरीदारी से बचने में मदद करेगा।

  1. कीमतों की तुलना करें:

विभिन्न दुकानों में कीमतों की तुलना करें और सबसे अच्छी डील प्राप्त करें।
ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों कीमतों की तुलना करें।

  1. सौदेबाजी करें:

दुकानदारों से सौदेबाजी करने में संकोच न करें।
आप अक्सर बेहतर कीमत प्राप्त कर सकते हैं, खासकर यदि आप थोक में खरीदारी कर रहे हैं।

  1. क्रेडिट कार्ड के बजाय डेबिट कार्ड का उपयोग करें:

क्रेडिट कार्ड पर ब्याज लगता है, इसलिए डेबिट कार्ड का उपयोग करना बेहतर है।
यदि आप क्रेडिट कार्ड का उपयोग करते हैं, तो सुनिश्चित करें कि आप इसे समय पर चुकाते हैं।

  1. कैशबैक और डिस्काउंट ऑफर का लाभ उठाएं:

कई दुकानें कैशबैक और डिस्काउंट ऑफर देती हैं।
इन ऑफर का लाभ उठाकर आप पैसे बचा सकते हैं।

  1. ऑनलाइन शॉपिंग करें:

ऑनलाइन शॉपिंग में अक्सर बेहतर डील और छूट मिलती है।
ऑनलाइन शॉपिंग करने से पहले शिपिंग शुल्क और रिटर्न नीति अवश्य पढ़ें।

  1. त्योहार से पहले खरीदारी करें:

त्योहार के दिनों में दुकानों में भीड़भाड़ होती है और कीमतें भी बढ़ सकती हैं।
त्योहार से पहले खरीदारी करके आप पैसे बचा सकते हैं।

Ramadan 2024: प्रेगनेंसी में रोजा रखते वक्त महिलाएं इन बातों का रखें ध्यान

रमजान के पाक महीने में रोजा रखते वक्त कई बार लोग सेहत को लेकर यादा चौकस नहीं रहते। ऐसे में अगर आप गर्भवती हैं और रोजा रख रही हैं तो रोजा रखने से पहले आपको अपने डॉक्टर से सलाह जरूर लेनी चाहिए और रोजा रखने के दौरान इन जरूरी बातों का ध्यान रखें…


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  • प्रेग्नेंट महिलाओं में यदि खून की कमी या कोई अन्य दिक्कत हो तो हर दिन रोजा रखने से बचें।
  • रोजा रखने के दौरान अगर आपको ऐसा लगे कि आपको अंदर से अछा महसूस न हो या कमजोरी महसूस हो तो तुरंत डॉक्टर से बात करें।
  • रोजे के दौरान अगर ऐसा लगे की बचे का मूवमेंट नहीं हो रहा या आपको पेट में दर्द या कुछ असहज महसूस हो तो आपके लिए रोजा खोल देना ही सही होगा।
  • यदि आप का बीपी प्रेग्नेंसी में बढ़ गया हो तो आपके लिए रोजा रखना सुरक्षित नहीं होगा।
  • रोजे के दौरान प्रेग्नेंट महिलाएं को अपने वेट पर ध्यान देना होगा। अगर आपको ऐसा लगे कि वेट लगातार कम हो रहा तो आप रोजा खोल दें और डॉक्टर से सलाह लें।
  • रोजे के दौरान अगर आपको बार-बार प्यास लगे या मुंह सूखे या यूरीन का रंग पीला या गहरा भूरा हो तो यह आपके लिए सही नहीं। ये डिहाइड्रेशन के लक्षण हो सकते हैं।
  • रोजा रखते हुए अगर आपको ऐसा लगे कि आपको चक्कर आए तो आप अपने ब्लड शुगर को भी चेक कराएं।खाने में बरतें सावधानी
  • सहरी में खाते हुए कुछ बातें जरूर ध्यान दें। खाने में ऐसी चीजें लें जो न्यूट्रीएंटस से भरी हों। अछे से अपनी डायट लें और यादा खाने से भी बचें।
  • खजूर, भीगे बादाम जरूर खाएं क्योंकि ये आपको ही नहीं आपके शिशु के लिए भी जरूरी है। फल और जूस के साथ दूध या दही को भी लें।
  • दिनभर आपको कुछ भी नहीं खाना है तो ऐसे में आपको सहरी में ऐसी डायट लेनी होगी जो पूरे दिन आपको एनर्जी से भरा रखें।
  • सेहरी में हाई प्रोटीन डायट के साथ हाई फाइबर डायट लें। पनीर, चिकन, मटन, मल्टीग्रेन रोटी खाएं। ये आपको लंबे समय तक भूख से बचाएंगे।
  • बहुत गरिष्ठ-मसालेदार खाने से बचना चाहिए क्योंकि ये आपके सेहत के लिए ठीक नहीं हेागा।
  • बहुत मीठा या बहुत तीखा और ऑयली खाना बिलकुल न खाएं।
    सेहत के लक्षणों पर ध्यान देकर और खानपान में थोड़ी सी सावधानी बरत कर प्रेग्नेंसी के दौरान भी आप आसानी से रोजे रख सकती हैं और आपके गर्भ में पल रहे शिशु का स्वास्थ्य भी बेहतर रहेगा।


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Note: गर्भावस्था में रोजा रखना एक व्यक्तिगत निर्णय है। यदि आप रोजा रखना चाहती हैं, तो उपरोक्त बातों का ध्यान रखें और अपनी स्वास्थ्य स्थिति के अनुसार निर्णय लें।

अनाथ आश्रम के बच्चों के साथ इफ्तार करती जरीन खान,लोग कर रहे तारीफ

Zareen Khan Iftar party: बॉलीवुड एक्ट्रेस जरीन खान का एक वीडियो सामने आया है, जिसमें वो अनाथ आश्रम के बच्चों के साथ इफ्तार पार्टी करते दिखीं। बता दें कि एक्ट्रेस की लंबे समय से कोई भी फिल्में रिलीज नहीं हुई हैं। लेकिन, वो सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती है।

इस बीच हाल ही में जरीन खान ने अपने सोशल मीडिया पर कुछ वीडियो शेयर की है, जिसमें वो अनाथ आश्रम के बच्चों के साथ इफ्तार पार्टी करते दिखीं। एक्ट्रेस का ये क्यूट वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है।

Zareen Khan Iftar party: बता दें कि जरीन वैसे तो अपना बर्थडे 14 मई को मनाती हैं, लेकिन इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब के जरीन पांचवे रोजे के दिन की पैदा हुई थीं। ऐसे में अपने इस खास दिन को एक्ट्रेस ने अंजुमन ए इस्लाम अनाथालय आकर बच्चों के साथ सेलिब्रेट किया। एक्ट्रेस ने बताया कि उन्हें इन बच्चों के साथ रमादान और बर्थडे सेलिब्रट करके काफी अच्छा लगा और इन बच्चों से मिलकर वे बहुत खुश हैं।

Ramadan 2024: इंसान को बुराइयों से रोक कर अच्छाई की तरफ ले जाता है रोजा- शाही इमाम पंजाब

लुधियाना। पवित्र रमजान महीने के आज पहले जुम्मे की नमाज शहर भर में लाखों मुस्लमानों ने विभिन्न मस्जिदों में अदा की। इस मौके पर फील्डगंज चौंक स्थित ऐतिहासिक जामा मस्जिद में हजारों मुस्लमानों को संबोधित करते हुए पंजाब के शाही इमाम मौलाना मुहम्मद उसमान रहमानी लुधियानवी ने कहा कि रोजा इंसान को बुराइयों से रोक कर अच्छाई की तरफ ले जाता है। 

उन्होनें बताया कि हजरत मुहम्मद सल्ललाहु अलैहीवसल्लम का फरमान है कि रोजा इंसान के लिए बुराइयों से ढाल है जब तक वह इसे फाड़ ना डाले। शाही इमाम मौलाना उसमान ने कहा कि रोजा रखने का मतलब सिर्फ भूखे प्यासे रहना नहीं है। रोजेदार पर लाकामी है कि वो अपनी आंखों, अपनी जुबान और कानों का भी रोजा रखे और किसी की तरफ गलत निगाह ना डाले और अपनी जुबान से लोगों को तकलीफ ना पहुंचाएं। शाही इमाम ने कहा कि रोजेदारों को चाहिए कि वह अपने पड़ोसियों, रिश्तेदारों में उन लोगों का भी ख्याल रखे जो कि गरीबी की वजह से रमजान में परेशान नजर आते है। उन्होनें कहा कि गरीब की मदद करना हम पर लाजिम है। 

शाही इमाम ने कहा कि रोजा खास अल्लाह के लिए रखा जाता है और इसका बदला इंसान को अल्लाह ही देगा, जिसका अंदाजा भी इंसान नहीं लगा सकता। उन्होनें कहा कि अल्लाह ताआला को रोजेदार के मुंह की बू बहिशत (जन्नत) की खुशबू से ज्यादा पसंद है। शाही इमाम ने कहा कि रोजेदार को चाहिए कि वह रमजान में नेकी करने की आदत डाले ताकि रमजान के बाद वह नेकी करता रहे। 

उन्होनें कहा कि अगर हमारा रोजा हमें झूठ बोलने, बुरी निगाह से ताकने, गंदी बातें करने, हराम कमाने, शराब पीने से नहीं रोकता तो इस बात को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि वह इंसान रोजेदार नहीं है। उन्होनें कहा कि रमजान के तीस दिन हमें तमाम बुराइयों को छोड़ कर खुदा के हुक्म के मुताबिक जीवन व्यतीत करना चाहिए। 

वर्णनयोग है कि आज पवित्र रमजान के पहले जुम्मे की नमाज के मौके पर लाखों मुस्लमान मस्जिदों में इक्ट्ठे हुए जहां पर नमाज के बाद विश्व शांति की दुआ भी करवाई गई।

Ramadan 2024: खतरनाक बीमारी और बुरी मौत से बचाता है सदका, जाने सदके के जरूरी नियम

अबुल कलाम अश्क Abul@zpublicnews.in

मुकद्दस रमजान के महीने में मुसलमान द्वारा जकात और सदका दिया जाता है रमजान उल मुबारक के पहले जुमे की नमाज के मौके पर मस्जिद अबरार के इमाम मुफ्ती मुर्तजा अली कासमी ने जकात और सदके के बारे में विस्तार से बताया

ज़कात का नकद फायदा

ज़कात अदा करने से बलायें और मुसीबतें टाल दी जाती हैं। हदीस में है सदका झटपट दिया करो। इसलिए कि मुसीब सदके से आगे नहीं बढ़ती। एक दूसरी हदीस में है बेशक सदका अल्लाह तआला के गुस्से को ठंडा कर देता है। बुरी मौत से बचाता है यानी सख्त बीमारी और संगीन हालत से बचाने में मुफीद है। एक हदीस में ज़कात अदा करके अपने अमवाल की मजबूत हिफाज़त का इन्तिज़ाम करो और सदके के जरिए अपने मरीजों का इलाज करो और दुआबे गिरयादारी के जरिए आसमानों के तूफानों का मुकाबला करो।

ज़कात देने से मिलती है अल्लाह की रज़ा

ज़कात देने से माल पाक होता है और अल्लाह तआला की रज़ा हासिल होती है। जबकि ज़कात न देने से माल नापाक रहता है और अल्लाह तआला नाराज होता है। कुरआन और हदीस में ज़कात के बड़े फजाइल बयान किए गये हैं।

सदकतुल फितर के लिए साल गुजरना जरूरी नहीं

जकात हर साहिब ए निसाब पर फर्ज है, जिसके पास साढ़े बावन तौले चांदी या साढ़े सात तौले सोना हो या फिर इनकी कीमत जितना नकद रूपया हो। जकात के लिए साल गुजरना शर्त है, यानी किसी शख्स के पास छह-सात माह से इतना पैसा है कि जिससे वो इतना जेवर खरीद सकता है तो उस पर जकात फर्ज नहीं हुई। हां उस पर सदकतुल फितर वाजिब है। क्योंकि सदकतुल फितर के लिए साल गुजरने शर्त नहीं है।

ज़कात अदा ना करने पर वअीद

जो लोग सोना चांदी जमा करके रखते हैं और उन को अल्लाह की राह में खर्च नहीं करते सो आप उनको एक बड़े दर्दनाक अज़ाब की खबर सुनी दीजिए। अव्वल उनको दोजख की आग में तपाया जाएगा। फिर उस माल से उन लोगों की पेशानियां और उन की करवट और उन की पुश्तों को दाग दिया जाएगा। और उन से कहा जाएगा यह वो माल है जिस को तुम ने अपने वास्ते जमा करके रखा था। सो अब अपने जमा करने का मज़ा चखो (कुरआन करीम-सूर ए तोबा)।

हदीस: हजरत इब्ने मसऊद फरमाते हैं कि रसूल अकरम सल. ने इरशाद फरमाया कि जो शख्स अपने माल की ज़कात अदा नहीं करता क्यामत के दिन उस का माल गंजे सांप की शक्ल में उसकी गर्दन में डाल दिया जाएगा और वो कहेगा- मैं तेरा माल हूं।

2.5% जकात: गरीबों का हक, अमीरों का फर्ज, जानिए क्या है, क्यों है जरूरी और कैसे दें

रमज़ानुल मुबारक में सालाना जकात अदा की जाती है। जकात इस्लाम के पांच अरकानों में से एक रूक्न है। जकात हर साहिब-ए-निसाब पर फर्ज है। जिसके पास साढ़े बावन तौले चांदी या इनकी कीमत के बराबर नकद रूपया हो, उस पर जकात फर्ज है। जकात देने के लिए साल गुजरना शर्त है। शहर इमाम शरीफ नगर मुरादाबाद मुफ्ती परवेज आलम ने जकात के हुक्म के बारे में विस्तार से बताया।

दीन में जकात की अहमियत

ये एक मारूफ व मालूम हकीकत है कि शहादत, तौहीद व रिसालत और इ़कामते सलात के बाद जकात इस्लाम का तीसरा रूक्न है। कुरआन मजीद में सत्तर से ज्यादा मकामात पर इकामत सलात और अदाये ज़कात का जिक्र इस तरह साथ-साथ किया गया है जैसे मालूम होता है कि दीन में उन दोनों का मकाम और दर्जा करीब-करीब एक ही है।

ज़कात की राशि की गणना कैसे करें (How to Calculate Zakat Amount)

ज़कात की राशि की गणना उस व्यक्ति की कुल संपत्ति के 2.5% के रूप में की जाती है जो निसाब की शर्त को पूरा करता है। इसमें धन, सोना, चांदी, व्यापारिक वस्तुएं और कुछ निवेश शामिल हो सकते हैं। हालांकि, कुछ संपत्तियों को ज़कात से मुक्त किया गया है, जैसे कि व्यक्तिगत आवास और घरेलू सामान।

ज़कात की अदायगी

इस्लाम की मिनजुमला खुसूसियात में से एक खुसूसियात में से एक खुसूसियात ये है कि उसमें सद़का खैरात की रकम खुद अपने ही हम जिन्सों पर खर्च करने की इजाज़त दी गई है। फरीजाये ज़कात के सिलसिले में हर मुसलमान को खुसूसन ये ह़की़कत पेशे नज़र रखनी चाहिए- उसे जो कुछ भी दौलत मिली है, उसका असल मालिक वो खुद नहीं बल्कि अल्लाह तआला ही मालिक हकीकी हैं। उसने मह्ज अपने फज़्ल से हमें अपनी मल्कियत में बतौर नयाबत खर्च करने का ह़क दे रखा है। जब अल्लाह ही उसका मालिक है तो अगर वो अपने बंदों को ये हुक्म करता कि वो अपना सारा माल अल्लाह की राह में लुटा दे तो हमें शिकायत या ऐतराज़ का कोई मौका ना था। क्योंकि उसकी चीज़ है, वो जहां और जितनी चाहे खर्च कर ले। मगर ये भी उसका फज़्ल है कि हमें सिर्फ ढाई फीसद खर्च करने का हुक्म दिया है। और साथ ही उस तरफ तवज्जो दिलायी कि हम तुम्हारा नहीं मांग रहे हैं, बल्कि हमने जो तुम्हे दिया है उसमें से थोड़ा हिस्सा लेना चाहते हैं।

ज़कात किसे दी जानी चाहिए? (Who Should Receive Zakat?)

ज़कात उन आठ निर्दिष्ट श्रेणियों के लोगों को दी जानी चाहिए जिनका उल्लेख क़ुरान में किया गया है:

  • गरीब (Fuqara): वे लोग जो गंभीर आर्थिक कठिनाई का सामना कर रहे हैं।
  • मिसकीन (Miskin): वे लोग जो गरीब से भी बदतर स्थिति में हैं और बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने में भी असमर्थ हैं।
  • ज़कात वसूल करने वाले (Amil uz-Zakat): वे लोग जो ज़कात इकट्ठा करते और वितरित करते हैं।
  • रिक़ाब (Riqab): क़र्ज़ से दबे हुए लोग।
  • ग़रज़े मंदान (Gharimin): क़र्ज़दार जिनके पास क़र्ज़ चुकाने का कोई साधन नहीं है।
  • फी सबीलिल्लाह (Fi Sabilillah): रास्ते में (अल्लाह के मार्ग में) खर्च, जैसे धार्मिक कारणों से यात्रा करना।
  • इब्न-ए-सबील (Ibn us-Sabil): यात्री जो यात्रा के दौरान आर्थिक कठिनाई का सामना कर रहे हैं।
  • ज़कात माल में इज़ाफे का सबब

आमतौर पर लोग समझते हैं कि ज़कात की अदायगी से माल घट जाता है। कुरआन हदीस की सराहत ये है कि माल घटता नहीं बल्कि बढ़ता है। हदीस में नबी अकरम (स.अ.व.) ने फरमाया- किसी आदमी का माल सदके की वजह से कम नहीं होता।

आखिरत का नफा

1- एक रूपये के बदले सात सौ गुनाह अज्र मुकर्रर है।

2- ज़कात में खर्च गोया अल्लाह के साथ तिजारत करना है, जिसमें किसी नुकसान का अंदेशा नहीं।

3- ज़कात क्यामत के दिन हमारे लिए हुज्जत होगी।

4- जो शख्स ज़कात व सदका अदा करने वाला होगा उसको जन्नत के खास दरवाजों से दाखिल किया जायेगा।

ज़कात की फर्जियत

आज़ाद हो, मुसलमान हो, समझदार हो, बालिग होने से ज़कात की फर्जि़यत का इल्म हो, माल बा कद्रे निसाब हो। मसलन सोने का निसाब बीस मिस़्काल, चांदी का निसाब दो सौ दिरहम निसाब पर एक साल पूरा गुजर जाये तो ज़कात की अदायगी वाजिब हो जाती है।

ज़कात के अहम मसाइल

भैंस पर जकात है या दूध पर – अगर भैंसों की तिजारत होती है तो दूसरे तिजारत के माल की तरह उन पर ज़कात होगी। यानी साल गुजरने पर जितनी कीमत की भैंस होगी उसका चालिसवां हिस्सा ज़कात अदा करेंगे। दरमियां साल में जो कुछ उन को खिलाया या उस से कमाकर खाया उस का कोई हिसाब नहीं होगा और अगर भैंस की तिजारत नहीं बल्कि दूध की तिजारत की जाती है तो भैंसों पर ज़कात लाजिम नहीं होगी बल्कि दूध की कीमत का जो रूपया साल पूरा होने पर मौजूद है उस में जकात लाजिम होगी।

Ramadan 2024: आज से शुरू हो जाएगी तरावीह की नमाज, पहला रोजा कल, जारी हुए हेल्प लाइन नंबर

Ramadan Mubarak 2024: रमजान का पवित्र महीना शुरू होने वाला है। आज भारत में चांद देखे जाने की संभावना है। सऊदी अरब में रमजान का चांद देखा जा चुका है। अरब में आज यानि 11 मार्च को पहला रोजा है। वहीं भारत में आज चांद देखे जाने के बाद कल, 12 मार्च को पहला रोजा रखा जाएगा। महीना पूरा होने के बाद ईद का त्‍योहार मनाया जाएगा।

इस महीने में रोजदार रोजा रखने के साथ ही कुरान की तिलावट और अल्‍लाह की इबादत करते हैं। रोजे की शुरुआत सुबह सहरी खाकर की जाती है। वहीं शाम को इफ्तार के साथ रोजा खोला जाएगा।

12 मार्च सहरी का समय

  • लखनऊ- सुबह 5.04 बजे
  • कानपुर- सुबह 5.03 बजे
  • अलीगढ़- सुबह 5.12 बजे
  • बरेली- सुबह 5.06 बजे
  • मुरादाबाद- सुबह 5.02 बजे

12 मार्च इफ्तार का समय

  • लखनऊ- शाम 6.13 बजे
  • कानपुर- शाम 6.17 बजे
  • अलीगढ़- शाम 6.34 बजे
  • बरेली- शाम 6.20 बजे
  • मुरादाबाद – शाम 6.24 बजे
  • इफ्तार और सहरी के समय में क्षेत्रवार थोड़ा परिवर्तन हो सकता है।

तरावीह की नमाज का वक्त तय, आज देखा जाएगा चांद

माह-ए-रमजान का चांद सोमवार को देखा जाएगा। चांद दिखने पर पहला रोजा 12 को होगा नहीं तो 13 मार्च को होगा। चांद दिखने के साथ ही सभी मस्जिदों में तरावीह की नमाज शुरू होगी। रमजान में तरावीह नमाज का विशेष महत्व है। तरावीह में बीस रकात नमाज अदा की जाती है। तरावीह की नमाज़ में हाफिज़ पूरा कुरआन-ए-पाक सुनाते हैं। सभी मस्जिदों में तरावीह की नमाज विशेष रूप से अदा की जाती है।

इस्लामिक सेंटर ऑफ इंडिया से तमाम मस्जिदों में पारे और समय की घोषणा कर दी गई। शहर की अधिकांश मस्जिदों मेंईशा (रात की नमाज) आठ बजे होगी और 8.15 और 8.30 से तरावीह की नमाज होगी। इमाम ईदगाह मौलाना खालिद रशीद फरंगी ने कहा कि तरावीह की नमाज मर्द व औरत सबके लिए सुन्नत है।

हेल्पलाइन पर पूछें अपने सवाल

रमजानुल मुबारक में रोजा, नमाज, जकात की आशंकाओं को हेल्पलाइन के जरिये दूर किया जा सकेगा। इस्लामिक सेंटर ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली और शिया धर्मगुरु मौलाना सैफ अब्बास नकवी, काजी शहर मुफ्ती अबुल इरफान फरंगी महली ने रमजान हेल्पलाइन की जानाकरी दी।

मौलाना खालिद रशीद ने बताया कि पहले रोजे से हेल्पलाइन पर दिन में 2 बजे से शाम 4 बजे तक 9415023970, 9335929670, 9415102947, 7007705774, 9140427677 वेब साइट, www. farangi mahal.in ई-मेल, ramzan helpline 2005 @ gmail. com पर सवाल किए जा सकते हैं।

मौलाना सैफ अब्बास ने बताया कि शिया हेल्पलाइन भी पहले रोजे से शुरू होगी। सुबह 10 से 12 बजे तक मोबाइल नंबर 9415580936, 9839097407 पर संपर्क किया जा सकता है। महिलाओं के लिए एक विशेष हेल्पलाइन स्थापित की गई है जिसमें महिला विद्वान महिलाओं के सवालों का जवाब देगीं।

महिलाएं इस नंबर 6386897124 पर संपर्क करें। इदारा शरिया फरंगी महल के अध्यक्ष मौलाना इरफान मियां फरंगी महली ने भी हेल्पलाइन की शुरुआत की है।

मौलाना अफ्फान अतीक फिरंगी महली ने बताया पहले रोजे से दोपहर दो से चार बजे तक 9807404508, 9918117798, 9335841177 पर सवाल पूछ सकते हैं। इसके साथ ही 11 मार्च को चांद देखने की अपील की गई है। चांद दिखने पर तीनो हेल्पलाइन के नम्बरों पर गवाही दे जा सकती है।