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रमज़ानुल मुबारक में सालाना जकात अदा की जाती है। जकात इस्लाम के पांच अरकानों में से एक रूक्न है। जकात हर साहिब-ए-निसाब पर फर्ज है। जिसके पास साढ़े बावन तौले चांदी या इनकी कीमत के बराबर नकद रूपया हो, उस पर जकात फर्ज है। जकात देने के लिए साल गुजरना शर्त है। शहर इमाम शरीफ नगर मुरादाबाद मुफ्ती परवेज आलम ने जकात के हुक्म के बारे में विस्तार से बताया।

दीन में जकात की अहमियत

ये एक मारूफ व मालूम हकीकत है कि शहादत, तौहीद व रिसालत और इ़कामते सलात के बाद जकात इस्लाम का तीसरा रूक्न है। कुरआन मजीद में सत्तर से ज्यादा मकामात पर इकामत सलात और अदाये ज़कात का जिक्र इस तरह साथ-साथ किया गया है जैसे मालूम होता है कि दीन में उन दोनों का मकाम और दर्जा करीब-करीब एक ही है।

ज़कात की राशि की गणना कैसे करें (How to Calculate Zakat Amount)

ज़कात की राशि की गणना उस व्यक्ति की कुल संपत्ति के 2.5% के रूप में की जाती है जो निसाब की शर्त को पूरा करता है। इसमें धन, सोना, चांदी, व्यापारिक वस्तुएं और कुछ निवेश शामिल हो सकते हैं। हालांकि, कुछ संपत्तियों को ज़कात से मुक्त किया गया है, जैसे कि व्यक्तिगत आवास और घरेलू सामान।

ज़कात की अदायगी

इस्लाम की मिनजुमला खुसूसियात में से एक खुसूसियात में से एक खुसूसियात ये है कि उसमें सद़का खैरात की रकम खुद अपने ही हम जिन्सों पर खर्च करने की इजाज़त दी गई है। फरीजाये ज़कात के सिलसिले में हर मुसलमान को खुसूसन ये ह़की़कत पेशे नज़र रखनी चाहिए- उसे जो कुछ भी दौलत मिली है, उसका असल मालिक वो खुद नहीं बल्कि अल्लाह तआला ही मालिक हकीकी हैं। उसने मह्ज अपने फज़्ल से हमें अपनी मल्कियत में बतौर नयाबत खर्च करने का ह़क दे रखा है। जब अल्लाह ही उसका मालिक है तो अगर वो अपने बंदों को ये हुक्म करता कि वो अपना सारा माल अल्लाह की राह में लुटा दे तो हमें शिकायत या ऐतराज़ का कोई मौका ना था। क्योंकि उसकी चीज़ है, वो जहां और जितनी चाहे खर्च कर ले। मगर ये भी उसका फज़्ल है कि हमें सिर्फ ढाई फीसद खर्च करने का हुक्म दिया है। और साथ ही उस तरफ तवज्जो दिलायी कि हम तुम्हारा नहीं मांग रहे हैं, बल्कि हमने जो तुम्हे दिया है उसमें से थोड़ा हिस्सा लेना चाहते हैं।

ज़कात किसे दी जानी चाहिए? (Who Should Receive Zakat?)

ज़कात उन आठ निर्दिष्ट श्रेणियों के लोगों को दी जानी चाहिए जिनका उल्लेख क़ुरान में किया गया है:

  • गरीब (Fuqara): वे लोग जो गंभीर आर्थिक कठिनाई का सामना कर रहे हैं।
  • मिसकीन (Miskin): वे लोग जो गरीब से भी बदतर स्थिति में हैं और बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने में भी असमर्थ हैं।
  • ज़कात वसूल करने वाले (Amil uz-Zakat): वे लोग जो ज़कात इकट्ठा करते और वितरित करते हैं।
  • रिक़ाब (Riqab): क़र्ज़ से दबे हुए लोग।
  • ग़रज़े मंदान (Gharimin): क़र्ज़दार जिनके पास क़र्ज़ चुकाने का कोई साधन नहीं है।
  • फी सबीलिल्लाह (Fi Sabilillah): रास्ते में (अल्लाह के मार्ग में) खर्च, जैसे धार्मिक कारणों से यात्रा करना।
  • इब्न-ए-सबील (Ibn us-Sabil): यात्री जो यात्रा के दौरान आर्थिक कठिनाई का सामना कर रहे हैं।
  • ज़कात माल में इज़ाफे का सबब

आमतौर पर लोग समझते हैं कि ज़कात की अदायगी से माल घट जाता है। कुरआन हदीस की सराहत ये है कि माल घटता नहीं बल्कि बढ़ता है। हदीस में नबी अकरम (स.अ.व.) ने फरमाया- किसी आदमी का माल सदके की वजह से कम नहीं होता।

आखिरत का नफा

1- एक रूपये के बदले सात सौ गुनाह अज्र मुकर्रर है।

2- ज़कात में खर्च गोया अल्लाह के साथ तिजारत करना है, जिसमें किसी नुकसान का अंदेशा नहीं।

3- ज़कात क्यामत के दिन हमारे लिए हुज्जत होगी।

4- जो शख्स ज़कात व सदका अदा करने वाला होगा उसको जन्नत के खास दरवाजों से दाखिल किया जायेगा।

ज़कात की फर्जियत

आज़ाद हो, मुसलमान हो, समझदार हो, बालिग होने से ज़कात की फर्जि़यत का इल्म हो, माल बा कद्रे निसाब हो। मसलन सोने का निसाब बीस मिस़्काल, चांदी का निसाब दो सौ दिरहम निसाब पर एक साल पूरा गुजर जाये तो ज़कात की अदायगी वाजिब हो जाती है।

ज़कात के अहम मसाइल

भैंस पर जकात है या दूध पर – अगर भैंसों की तिजारत होती है तो दूसरे तिजारत के माल की तरह उन पर ज़कात होगी। यानी साल गुजरने पर जितनी कीमत की भैंस होगी उसका चालिसवां हिस्सा ज़कात अदा करेंगे। दरमियां साल में जो कुछ उन को खिलाया या उस से कमाकर खाया उस का कोई हिसाब नहीं होगा और अगर भैंस की तिजारत नहीं बल्कि दूध की तिजारत की जाती है तो भैंसों पर ज़कात लाजिम नहीं होगी बल्कि दूध की कीमत का जो रूपया साल पूरा होने पर मौजूद है उस में जकात लाजिम होगी।

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