नई दिल्ली। 11 अगस्त 1947 भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में दर्ज है। यह वह दिन था जब स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर भारत और पाकिस्तान के बीच बंटवारे की तैयारियाँ अपने चरम पर थीं। दोनों नवगठित राष्ट्र अपनी-अपनी सरकारों, नीतियों और संवैधानिक ढाँचों को आकार देने में जुटे थे। यह वह समय था जब उम्मीदों के साथ-साथ अनिश्चितताएँ भी अपने शबाब पर थीं। दिल्ली से कराची तक, हर जगह एक नए युग की शुरुआत की उलटी गिनती शुरू हो चुकी थी।
पाकिस्तान की संविधान सभा में मुहम्मद अली जिन्ना का ऐतिहासिक भाषण
11 अगस्त 1947 को कराची में पाकिस्तान की संविधान सभा की पहली बैठक आयोजित हुई। इस ऐतिहासिक सत्र में मुहम्मद अली जिन्ना को सर्वसम्मति से पाकिस्तान का पहला गवर्नर जनरल चुना गया। अपने संबोधन में जिन्ना ने स्पष्ट किया, “आपका मज़हब या जाति, चाहे वह आपका निजी मामला है, राज्य का इससे कोई संबंध नहीं होगा।” उन्होंने अल्पसंख्यकों को धार्मिक स्वतंत्रता और समानता का आश्वासन दिया, जो उस समय के तनावपूर्ण माहौल में एक साहसिक कदम था। इस भाषण ने न केवल पाकिस्तान की नीति को रेखांकित किया, बल्कि इसके भविष्य के लिए एक समावेशी दृष्टिकोण की नींव रखी। यह भाषण आज भी एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ के रूप में जाना जाता है, जो पाकिस्तान के संवैधानिक मूल्यों को परिभाषित करता है।
भारत में सत्ता हस्तांतरण की अंतिम तैयारियाँ
उसी दिन भारत में स्वतंत्रता की तैयारियाँ जोरों पर थीं। दिल्ली, लाहौर, कराची और कलकत्ता जैसे प्रमुख शहरों में सरकारी कार्यालयों, रेलवे, डाक सेवाओं और अन्य प्रशासनिक इकाइयों के बंटवारे का काम तेजी से चल रहा था। 11 अगस्त को सीमा आयोग (बाउंड्री कमीशन) ने पंजाब और बंगाल के विभाजन की अपनी अंतिम रिपोर्ट को लगभग तैयार कर लिया था। इस रिपोर्ट ने दोनों देशों की सीमाओं को परिभाषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, हालाँकि इसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर विस्थापन और सांप्रदायिक हिंसा भी देखने को मिली। दिल्ली में स्वतंत्रता दिवस समारोह की तैयारियाँ भी अपने चरम पर थीं, जहाँ 15 अगस्त को तिरंगा फहराने की व्यवस्थाएँ की जा रही थीं।
इतिहास में दर्ज प्रमुख घटनाएँ
11 अगस्त 1947 को कई ऐसी घटनाएँ हुईं जो इतिहास के पन्नों में अमर हो गईं। इनमें शामिल हैं:
- पाकिस्तान की संविधान सभा की पहली बैठक: कराची में इस बैठक ने नए राष्ट्र की नींव रखी।
- मुहम्मद अली जिन्ना का गवर्नर जनरल के रूप में चयन: यह पाकिस्तान के लिए एक निर्णायक क्षण था।
- अल्पसंख्यकों की धार्मिक स्वतंत्रता की घोषणा: जिन्ना के भाषण ने समावेशी नीति की दिशा दिखाई।
- बाउंड्री कमीशन की रिपोर्ट: पंजाब और बंगाल के विभाजन की रूपरेखा तैयार हुई।
- दिल्ली में स्वतंत्रता समारोह की तैयारियाँ: भारत में स्वतंत्रता की उलटी गिनती शुरू हुई।
एक नए युग का आगाज़
11 अगस्त 1947 का दिन केवल एक तारीख नहीं, बल्कि भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में एक युगांतरकारी क्षण था। यह वह समय था जब दो नए राष्ट्र अपने भविष्य को आकार देने के लिए तैयार हो रहे थे। जहाँ एक ओर पाकिस्तान अपनी संवैधानिक नींव रख रहा था, वहीं भारत स्वतंत्रता के उत्सव की अंतिम तैयारियों में जुटा था। यह वह क्षण था जब दोनों देशों में उम्मीदों और चुनौतियों का अनूठा संगम देखने को मिला। यह दिन इतिहास में इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसने न केवल सीमाओं को, बल्कि दो देशों की नियति को भी परिभाषित किया।