तुर्की में इन दिनों हालात तेजी से बिगड़ते नजर आ रहे हैं। एक और मुस्लिम देश में तख्तापलट की आशंका गहराती दिख रही है, जहां हजारों लोग सड़कों पर उतर आए हैं और देश के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोआन के खिलाफ जोरदार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। यह प्रदर्शन इतना उग्र हो गया है कि सरकार को मजबूरन कड़े कदम उठाने पड़े हैं। प्रशासन ने अगले चार दिनों तक तुर्की में किसी भी तरह के प्रदर्शन पर पूरी तरह से रोक लगा दी है। यह फैसला उस वक्त लिया गया, जब देश की जनता में गुस्सा और असंतोष अपने चरम पर पहुंच गया। यह घटना न सिर्फ तुर्की की राजनीति के लिए एक बड़ा संकट है, बल्कि यह पूरे क्षेत्र में अस्थिरता का संकेत भी दे रही है।
पिछले कुछ दिनों से तुर्की में राजनीतिक उथल-पुथल देखने को मिल रही है। प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति एर्दोआन के लंबे शासन से नाराज हैं और उनके इस्तीफे की मांग कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि उनकी नीतियों ने देश को आर्थिक और सामाजिक संकट में डाल दिया है। सड़कों पर नारे गूंज रहे हैं, जिनमें एर्दोआन को तानाशाह तक कहा जा रहा है। हालात तब और गंभीर हो गए, जब इस्तांबुल के मेयर एकरेम इमामोग्लू को हिरासत में लिया गया। इमामोग्लू को एर्दोआन का सबसे बड़ा राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी माना जाता है, और उनकी गिरफ्तारी ने प्रदर्शनों को और भड़का दिया। लोगों का मानना है कि यह कदम सरकार की ओर से विपक्ष को दबाने की कोशिश है, जिसने तख्तापलट की आशंकाओं को और हवा दे दी है।
तुर्की सरकार ने इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सख्ती बरतनी शुरू कर दी है। प्रदर्शनों पर चार दिन का बैन लगाने के साथ ही कई इलाकों में सड़कें बंद कर दी गई हैं। पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस का इस्तेमाल किया है। लेकिन इन सबके बावजूद, लोग पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। इस्तांबुल, अंकारा और इजमिर जैसे बड़े शहरों में प्रदर्शनकारी सड़कों पर डटे हुए हैं। सोशल मीडिया पर भी यह मुद्दा छाया हुआ है, जहां लोग तुर्की में बदलाव की मांग कर रहे हैं। कुछ लोगों का कहना है कि यह आंदोलन अब सिर्फ एकरेम इमामोग्लू की गिरफ्तारी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एर्दोआन के पूरे शासन के खिलाफ एक जनआंदोलन बन गया है।
यह पहली बार नहीं है जब तुर्की में एर्दोआन के खिलाफ विरोध के स्वर उठे हों। पिछले कई सालों से उनकी सरकार पर तानाशाही के आरोप लगते रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा प्रदर्शन पिछले प्रदर्शनों से कहीं ज्यादा गंभीर हैं। इसका कारण यह भी है कि देश की अर्थव्यवस्था पिछले कुछ समय से संकट में है। महंगाई और बेरोजगारी ने लोगों का जीना मुश्किल कर दिया है, और अब जनता अपने गुस्से को खुलकर व्यक्त कर रही है। इस बीच, सरकार का दावा है कि वह देश में स्थिरता बनाए रखने के लिए काम कर रही है, लेकिन प्रदर्शनकारियों का कहना है कि यह स्थिरता सिर्फ सत्ता को बचाने की कोशिश है।
तुर्की में चल रहा यह संकट न सिर्फ देश के भीतर बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा का विषय बन गया है। कई देशों ने इस स्थिति पर चिंता जताई है और इसे लोकतंत्र के लिए खतरा बताया है। क्या यह प्रदर्शन वाकई में तख्तापलट का रूप लेगा, यह कहना अभी जल्दबाजी होगी। लेकिन इतना तय है कि तुर्की के लोग बदलाव चाहते हैं, और वे इसके लिए अपनी आवाज बुलंद करने से पीछे नहीं हट रहे। आने वाले दिन इस देश के भविष्य के लिए निर्णायक साबित हो सकते हैं।