दुनियाभर की प्रमुख बीमा कंपनियां, जैसे कि Allianz और Zurich Insurance Group, जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के बढ़ते खतरे से चिंतित हैं। इनका मानना है कि अगर मौजूदा हालात नहीं बदले, तो प्राकृतिक आपदाओं से होने वाला आर्थिक नुकसान इतना बढ़ जाएगा कि कई क्षेत्रों को ‘बीमा के लायक नहीं’ (Uninsurable) घोषित करना पड़ सकता है। बढ़ते तापमान, चरम मौसमी घटनाएं और समुद्र के स्तर में वृद्धि जैसे कारक बीमा उद्योग के लिए गंभीर चुनौती बन रहे हैं। कंपनियां चेतावनी दे रही हैं कि अगर डिकार्बोनाइजेशन (कार्बन उत्सर्जन में कमी) के लिए तत्काल कदम नहीं उठाए गए, तो आर्थिक और सामाजिक स्थिरता पर गहरा असर पड़ सकता है।
जलवायु परिवर्तन और बढ़ता जोखिम
संयुक्त राष्ट्र के अनुमानों के अनुसार, इस सदी के अंत तक वैश्विक तापमान 2.6 से 3.1 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है। यह स्तर विनाशकारी प्रभाव डाल सकता है, जिसमें समुद्र के स्तर में भारी वृद्धि, भीषण गर्मी की लहरें, और बड़े पैमाने पर बाढ़ शामिल हैं। Allianz के बोर्ड मेंबर गंथर थालिंगर ने चेतावनी दी है कि ऐसे हालातों में आर्थिक रूप से अनुकूलन (एडाप्टेशन) लगभग असंभव हो जाएगा। उन्होंने उदाहरण दिया कि यदि समुद्र का स्तर 3 मीटर तक बढ़ जाता है, तो एम्स्टर्डम जैसे शहरों को बचाना नामुमकिन होगा, चाहे कितना भी पैसा खर्च किया जाए। चरम मौसमी घटनाओं के कारण रियल एस्टेट और अन्य संपत्तियां तेजी से अपनी वैल्यू खो रही हैं, जिससे बीमा कंपनियों के लिए जोखिम कवर करना मुश्किल हो रहा है।
बीमा उद्योग पर बढ़ता दबाव
जलवायु परिवर्तन के कारण प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ रही है। बाढ़, तूफान, जंगल की आग और सूखे जैसी घटनाएं बीमा कंपनियों के लिए बड़े दावों (क्लेम्स) का कारण बन रही हैं। थालिंगर के अनुसार, अगर मौजूदा रुझान जारी रहा, तो बीमा कंपनियां मॉर्गेज, निवेश और अन्य वित्तीय सेवाओं के लिए कवर देना बंद कर सकती हैं। इसका असर न केवल बीमा उद्योग पर पड़ेगा, बल्कि रियल एस्टेट, बैंकिंग और अन्य क्षेत्रों पर भी व्यापक प्रभाव होगा। कई क्षेत्रों में प्रीमियम इतने महंगे हो सकते हैं कि बीमा कराना आम लोगों की पहुंच से बाहर हो जाएगा। इससे कुछ क्षेत्रों को ‘अनइंश्योरेबल’ घोषित करने की नौबत आ सकती है, जिससे वहां आर्थिक गतिविधियां ठप हो सकती हैं।
डिकार्बोनाइजेशन: एकमात्र रास्ता
बीमा कंपनियां और विशेषज्ञ डिकार्बोनाइजेशन को इस संकट से निपटने का एकमात्र रास्ता मान रहे हैं। कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा, हरित प्रौद्योगिकी और सतत विकास पर ध्यान देना जरूरी है। थालिंगर ने जोर देकर कहा कि सरकारों, कंपनियों और समाज को मिलकर तत्काल कदम उठाने होंगे। अगर वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के पेरिस समझौते के लक्ष्य को हासिल नहीं किया गया, तो आर्थिक और पर्यावरणीय नुकसान को नियंत्रित करना असंभव हो जाएगा। बीमा कंपनियां अब अपने निवेश पोर्टफोलियो को भी हरित बनाने पर जोर दे रही हैं, ताकि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम किया जा सके।