बिहार के कैमूर जिले के भभुआ थाना क्षेत्र के कबार गांव से एक ऐसी घटना सामने आई है, जो न केवल हैरान करने वाली है, बल्कि समाज में रंगभेद और पारिवारिक हिंसा जैसे गंभीर मुद्दों पर सवाल खड़े करती है। प्रमिला देवी, एक माँ, जो अपने चार बच्चों के साथ जीवन की जंग लड़ रही हैं, ने अपने पति पप्पू बिंद के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज की है। प्रमिला का आरोप है कि उनके पति ने 25 साल पुरानी शादी को सिर्फ इसलिए तोड़ दिया, क्योंकि अब उन्हें उनकी पत्नी ‘काली’ और ‘असुंदर’ लगती है। इस शिकायत में प्रमिला ने बताया कि पप्पू बिंद ने न केवल उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया, बल्कि रंगभेदी टिप्पणियों के साथ उन्हें घर से निकालने की धमकी भी दी। यह घटना समाज में गहरे बैठे रंगभेद और लैंगिक भेदभाव की कड़वी सच्चाई को उजागर करती है।
प्रमिला ने अपनी शिकायत में कहा कि उनकी शादी को 25 साल हो चुके हैं, और इस दौरान उन्होंने अपने परिवार के लिए हर संभव त्याग किया। चार बच्चों की माँ होने के नाते, उन्होंने अपने पति और बच्चों के लिए दिन-रात मेहनत की, लेकिन पप्पू की बदलती सोच ने उनके जीवन को नर्क बना दिया। प्रमिला के अनुसार, पप्पू ने उनकी त्वचा के रंग को लेकर बार-बार अपमानजनक टिप्पणियाँ कीं और उन्हें ‘काली’ कहकर ताने मारे। इसके अलावा, पप्पू ने कथित तौर पर उनके साथ मारपीट भी की और बच्चों के सामने उन्हें अपमानित किया। इस घटना ने न केवल प्रमिला को भावनात्मक रूप से तोड़ा, बल्कि उनके बच्चों पर भी गहरा असर डाला है।
सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ एक माँ की लड़ाई
प्रमिला की शिकायत के बाद भभुआ थाना पुलिस ने पप्पू बिंद के खिलाफ घरेलू हिंसा और मानसिक उत्पीड़न का मामला दर्ज किया है। पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है और प्रमिला को सुरक्षा देने का आश्वासन दिया है। स्थानीय पुलिस अधिकारी ने बताया कि इस तरह के मामले समाज में गहरे बैठे रंगभेद और महिलाओं के प्रति हिंसा की मानसिकता को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि इस मामले में कड़ी कार्रवाई की जाएगी ताकि पीड़िता को न्याय मिल सके। इसके अलावा, स्थानीय महिला संगठनों ने भी प्रमिला के समर्थन में आवाज उठाई है और रंगभेद के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाने की मांग की है।
यह घटना समाज के लिए एक चेतावनी है कि रंगभेद और पारिवारिक हिंसा जैसी कुरीतियाँ आज भी हमारे बीच मौजूद हैं। प्रमिला की कहानी न केवल एक महिला की पीड़ा को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि कैसे सामाजिक मान्यताएँ और रूढ़ियाँ परिवारों को तोड़ रही हैं। समाज को इन मुद्दों पर खुलकर बात करने और बदलाव लाने की जरूरत है। प्रमिला जैसी महिलाओं को न केवल कानूनी सहायता, बल्कि सामाजिक समर्थन की भी आवश्यकता है ताकि वे अपने हक के लिए लड़ सकें और सम्मान के साथ जी सकें।