यमुनानगर की एक अदालत ने नाबालिग हिंदू लड़की के साथ यौन उत्पीड़न और धमकी देने के मामले में शाहबाज नाम के व्यक्ति को 7 साल की सजा सुनाई है। अदालत ने इस मामले को ‘लव जिहाद’ करार देते हुए इसे देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा बताया। इसके साथ ही, दोषी पर 1 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है। अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि ‘लव जिहाद’ कोई कानूनी शब्द नहीं है, लेकिन इसे गैर-मुस्लिम महिलाओं को प्रेम का झांसा देकर धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर करने की कोशिश के रूप में देखा जाता है। इस फैसले को सामाजिक और कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि यह ऐसे मामलों में कठोर कार्रवाई का संदेश देता है।
मामले की सुनवाई के दौरान, अदालत ने पीड़िता के बयानों और पुलिस जांच के आधार पर शाहबाज को दोषी ठहराया। जज ने अपने फैसले में कहा कि इस तरह के अपराध न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर हमला हैं, बल्कि सामाजिक सौहार्द को भी नुकसान पहुंचाते हैं। दोषी को भारतीय न्याय संहिता की धारा 61(2) (आपराधिक साजिश) और 351(2) (आपराधिक धमकी) के साथ-साथ पॉक्सो एक्ट की धारा 8 (यौन उत्पीड़न), 12 (बाल यौन उत्पीड़न) और 17 (उकसाने) के तहत सजा सुनाई गई। जुर्माने की राशि का भुगतान न करने पर अतिरिक्त कारावास का प्रावधान भी किया गया है।
मामले का विवरण और पुलिस कार्रवाई
पिछले साल नवंबर में, यमुनानगर सिटी पुलिस स्टेशन में 14 साल की एक नाबालिग लड़की ने शाहबाज और एक अन्य नाबालिग के खिलाफ शिकायत दर्ज की थी। पीड़िता ने अपनी शिकायत में बताया कि स्कूल जाते समय एक नाबालिग लड़के ने उसका पीछा किया और शाहबाज ने उसे दोस्ती करने के लिए दबाव डाला। लड़की ने यह भी आरोप लगाया कि शाहबाज ने उसे धमकियां दीं और उसका यौन उत्पीड़न किया। शिकायत के आधार पर पुलिस ने तुरंत कार्रवाई शुरू की और दोनों आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया।
पुलिस जांच में सामने आया कि शाहबाज ने पीड़िता को प्रेम का झांसा देकर उस पर धर्म परिवर्तन का दबाव बनाया था। जांच के दौरान, पुलिस ने पीड़िता के बयानों, गवाहों और अन्य साक्ष्यों के आधार पर शाहबाज को मुख्य आरोपी के रूप में चिह्नित किया। नाबालिग सह-आरोपी के खिलाफ भी किशोर न्याय अधिनियम के तहत कार्रवाई की गई। यमुनानगर पुलिस ने इस मामले में त्वरित कार्रवाई करते हुए सभी आवश्यक सबूत जुटाए, जिसके आधार पर अदालत ने यह कड़ा फैसला सुनाया।
इस मामले ने स्थानीय समुदाय में व्यापक चर्चा को जन्म दिया है। कई सामाजिक संगठनों ने अदालत के फैसले का स्वागत किया है और इसे नाबालिगों के खिलाफ अपराधों के प्रति शून्य सहनशीलता का प्रतीक बताया है। वहीं, कुछ लोगों ने ‘लव जिहाद’ शब्द के इस्तेमाल पर सवाल उठाए हैं, क्योंकि यह कानूनी रूप से परिभाषित नहीं है। फिर भी, इस फैसले ने समाज में जागरूकता बढ़ाने और ऐसे अपराधों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की आवश्यकता पर जोर दिया है।