रामपुर: समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खां के बेटे और पूर्व विधायक अब्दुल्ला आजम को एक आपराधिक मामले में बड़ी कानूनी राहत मिली है। रामपुर की एमपी-एमएलए स्पेशल कोर्ट ने शुक्रवार को इस मामले में अपना फैसला सुनाते हुए अब्दुल्ला को सभी आरोपों से दोषमुक्त कर दिया। कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि अभियोजन पक्ष आरोपों को साबित करने में पूरी तरह असफल रहा, जिसके आधार पर अब्दुल्ला को बरी किया गया। यह फैसला अब्दुल्ला के लिए एक महत्वपूर्ण जीत मानी जा रही है, जो उनके राजनीतिक और व्यक्तिगत जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
2019 का है मामला, फैसल खां ने लगाए थे गंभीर आरोप
यह मामला वर्ष 2019 का है, जब आम आदमी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता फैसल खां लाला ने अब्दुल्ला आजम समेत तीन लोगों के खिलाफ रामपुर के गंज कोतवाली में प्राथमिकी दर्ज कराई थी। फैसल खां ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया था कि वह समाजवादी पार्टी के नेता आजम खां के राजनीतिक विरोधी हैं और उनके खिलाफ कई गंभीर मुद्दों पर लगातार शिकायतें दर्ज करा रहे हैं। इनमें जौहर ट्रस्ट द्वारा किसानों की जमीन पर कथित कब्जा और यतीमखाना बस्ती को उजाड़ने जैसे मामले शामिल थे। फैसल का दावा था कि उनकी इन शिकायतों के कारण आजम खां, उनके बेटे अब्दुल्ला और उनके समर्थक उन्हें लगातार निशाना बना रहे थे।
धमकी और सोशल मीडिया पर गालियों का आरोप
फैसल खां ने अपनी प्राथमिकी में कहा था कि अब्दुल्ला आजम और उनके समर्थकों ने उन्हें कई बार रास्ते में रोककर धमकाया। इसके अलावा, सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां और गालियां दी गईं। इस मामले में अब्दुल्ला के साथ दो अन्य लोगों, फसाहत अली खां उर्फ शानू और जिला सहकारी बैंक के पूर्व चेयरमैन सलीम कासिम को भी नामजद किया गया था। गौरतलब है कि फसाहत अली खां अब भारतीय जनता पार्टी से जुड़ चुके हैं, जबकि सलीम कासिम का मुकदमे की कार्रवाई के दौरान निधन हो चुका है।
कोर्ट ने माना, साक्ष्य के अभाव में आरोप निराधार
मामले की सुनवाई रामपुर की एमपी-एमएलए स्पेशल कोर्ट (मजिस्ट्रेट ट्रायल) में हुई। लंबी कानूनी प्रक्रिया और साक्ष्यों की जांच के बाद कोर्ट ने पाया कि फैसल खां द्वारा लगाए गए आरोपों के समर्थन में कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया गया। अभियोजन पक्ष की ओर से प्रस्तुत साक्ष्य अपर्याप्त रहे, जिसके आधार पर कोर्ट ने अब्दुल्ला आजम को सभी आरोपों से बरी करने का फैसला सुनाया। इस फैसले के बाद अब्दुल्ला के समर्थकों में खुशी की लहर है, जबकि फैसल खां की ओर से इस पर अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। यह फैसला अब्दुल्ला के लिए न केवल कानूनी, बल्कि राजनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।