उत्तर प्रदेश के पिलखुवा में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां रेलवे में कार्यरत एक कर्मचारी ने अपने दो साथियों के साथ मिलकर नकली नोट छापने का बड़ा रैकेट खड़ा कर लिया था। यह गैंग न केवल जाली मुद्रा छाप रहा था, बल्कि इसे प्रदेश के कई जिलों में सप्लाई भी कर रहा था। इस संगठित अपराध ने नकली नोटों के कारोबार को एक नए स्तर पर पहुंचा दिया था, लेकिन यूपी की एटीएस (एंटी-टेरेरिस्ट स्क्वॉड) ने इस गैंग को रंगे हाथ पकड़कर इसके काले कारनामों का पर्दाफाश कर दिया।
पिलखुवा के लाखन रेलवे स्टेशन पर पॉइंट्समैन के तौर पर काम करने वाला गजेंद्र यादव बुलंदशहर के गजौरी गांव का रहने वाला है। बाहर से देखने में शालीन और मिलनसार गजेंद्र ने अपने दो साथियों, सिद्धार्थ झा (गाजीपुर, नई दिल्ली) और विजय वीर चौधरी (रसूलपुर, बुलंदशहर) के साथ मिलकर नकली नोटों का कारोबार शुरू किया। इस तिकड़ी ने काम का बंटवारा इस तरह किया था कि हर कोई अपनी भूमिका बखूबी निभा रहा था। गजेंद्र की जिम्मेदारी थी नकली नोटों की सप्लाई और ग्राहकों की तलाश, जबकि सिद्धार्थ नोटों की डिजाइनिंग और छपाई का काम संभालता था। विजय वीर चौधरी का काम था खास कागज और अन्य सामग्री का इंतजाम करना।
हाईटेक तकनीक और अलीबाबा का खेल
यह गैंग इतना शातिर था कि नकली नोटों को असली जैसा बनाने के लिए हाईटेक तकनीक का इस्तेमाल करता था। नोटों की छपाई के लिए जरूरी वाटरमार्क और सिक्योरिटी थ्रेड युक्त खास पेपर को विजय वीर चौधरी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म अलीबाबा डॉट कॉम से मंगवाता था। इसके बाद सिद्धार्थ झा अपने लैपटॉप और प्रिंटर की मदद से नोटों की डिजाइन तैयार करता और उन्हें प्रिंट करता। छपाई के बाद नोटों को असली जैसा दिखाने के लिए विशेष प्रोसेसिंग की जाती थी, जिसमें लेमिनेशन, कटिंग और खास स्याही का उपयोग शामिल था। यह पूरी प्रक्रिया इतनी सटीक थी कि नकली नोटों को पहचानना आम लोगों के लिए मुश्किल था।
सोशल मीडिया बना हथियार
गजेंद्र यादव इस गैंग का मास्टरमाइंड था, जो सोशल मीडिया का इस्तेमाल करके नकली नोटों के खरीददार ढूंढ़ता था। वह अलग-अलग जिलों में अपने ग्राहकों से संपर्क करता और नकली मुद्रा की सप्लाई सुनिश्चित करता। इस तरह यह गैंग धीरे-धीरे अपने नेटवर्क को पूरे उत्तर प्रदेश में फैलाता जा रहा था। सोशल मीडिया की पहुंच ने इस अपराध को और आसान बना दिया, क्योंकि गैंग बिना किसी शक के अपने ग्राहकों तक पहुंच रहा था।
एटीएस की सटीक कार्रवाई
पिलखुवा के फरीदनगर-भोजपुर रोड पर एटीएस ने तब छापा मारा, जब यह गैंग नकली नोटों की एक बड़ी खेप लेकर किसी ग्राहक को देने जा रहा था। एटीएस ने तीनों आरोपियों को रंगे हाथ गिरफ्तार किया और उनकी कार से 3.90 लाख रुपये की नकली मुद्रा बरामद की। इसके अलावा, छपाई में इस्तेमाल होने वाले हाईटेक उपकरण जैसे लैपटॉप, प्रिंटर, लेमिनेशन मशीन, कटर ब्लेड, सिक्योरिटी थ्रेड पेपर, और खास स्याही की बोतलें भी जब्त की गईं। गैंग के पास से 103 सिक्योरिटी शीट, पांच मोबाइल फोन, दो पेन ड्राइव और एक कार भी बरामद हुई। पूछताछ में पता चला कि यह गैंग लंबे समय से सक्रिय था और कई जिलों में नकली नोटों की सप्लाई कर चुका था।
गजेंद्र का रहस्यमयी व्यवहार
गजेंद्र यादव को सभी एक शांत और मिलनसार व्यक्ति के रूप में जानते थे। उसने चार दिन की छुट्टी ली थी और अपने घर चला गया था, लेकिन पांचवें दिन ड्यूटी पर नहीं लौटा। इस पर उसके पिता खुद पिलखुवा स्टेशन पर उसकी खोजबीन करने पहुंचे। रेलवे अधिकारियों का कहना है कि उन्हें कभी गजेंद्र पर कोई शक नहीं हुआ। हैरानी की बात यह है कि गैंग के एक सदस्य की पत्नी उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही है, जिससे इस मामले में और भी सवाल खड़े हो रहे हैं।